शनिवार, 29 जुलाई 2017

योग बनाम योगा



और एक बार फिर विक्रम बेताल को अपने कंधे पर लाद चुप रहने का निश्चय कर चल पड़ा | बेताल ने हमेशा की तरह समय बिताने के लिए बातों का सहारा लिया | उसने राजन से इस चेतावनी के साथ प्रश्न करने शुरू किये कि उत्तर जानते हुए भी राजन चुप रहे तो उनके सर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे | इस कालजयी धमकी के आगे राजन ने इस बार भी घुटने टेक दिए और कुछ इस प्रकार के प्रश्न और उत्तर निकल कर सामने आये |
बेताल ने पूछा कि बताओ राजन, योगा क्या है ?   
इतना सुनते ही राजन ने भुनभुना कर कहा कि पहले सवाल क्लियर कर लो | योग के बारे में जानना है या योगा के बारे में | वरना हम योग पर ज्ञान देते रहें और बाद में तुम ये कह कर निकल लो कि हमने तो योगा के बारे में पूछा था | तुम्हारे ज़रा से कन्फ्युशन में फालतू में हमारे सर के टुकड़े हो जायेंगे |
ये सुन कर बेताल सकपकाया कि योग और योगा अलग होते हैं क्या ? उसके इस सवाल पर राजन दिल खोल कर हँसे और बोले कर दी न बेतालों जैसी बात | योग क्या है इस पर हमारे ऋषि मुनियों ने प्राचीन काल से इतना कुछ कह रखा है कि नया कुछ बताने की जरुरत नहीं है | उसमे से कोई भी परिभाषा quote कर दूंगा तो भी काम हो जाएगा | लेकिन आम तौर आज जनता योग से क्या समझती है वह महत्वपूर्ण है | यूँ तो योग एक जीवन पद्धति है लेकिन अब जनता शरीर को विभिन्न आकार से तोड़-मरोड़ कर किये जाने वाले आसनों को ही योग मानती है | जो जितने अधिक और जितने विचित्र आसन कर सकता है वो उतना ही बड़ा योगी और योगाचार्य कहलाता है | शरीर को अधिक से अधिक तरीके से तोड़ मरोड़ सकना ही आजकल योग है | अब इस चक्कर में वो-वो आसन ईजाद हुए जा रहे हैं जो योग में शायद थे भी नहीं | इस प्रकार योग दिनोंदिन और अधिक समृद्ध हो रहा है |
ये सुन कर बेताल बोला कि ये तो योग हुआ अब योगा क्या होता है वो बताओ | विक्रम ने उत्तर दिया कि सरल शब्दों में कहा जाए तो अमीरों द्वारा किया जाने वाला योग योगा है | गरीब की झोंपड़ी से जब योग निकल कर अमीरों के महलों में पहुंचता है तो वह योगा बन जाता है | गरीब जमीन पर बिना कुछ बिछाए भी योग कर सकता है लेकिन योगा तो सिर्फ और सिर्फ इम्पोर्टेड योगा मैट पर ही किया जा सकता है | वो भी हर साल इंटरनेशनल योगा डे पर नई मैट होनी अत्यंत आवश्यक है | पिछले साल वाली मैट पर किया गया योगा फलदायक नहीं होता है | इस बार योगा डे पर बारिश हुई थी तो अगले साल से वाटरप्रूफ योगा मैट के टेंडर निकलेंगे | बड़े स्कूलों में सिखाया जाने वाला योग नहीं योगा होता है | और बड़ी हस्तियों के योगा टीचर की हैसियत उन हस्तियों से भी अधिक होती है |
बेताल इतने बारीक फर्क जान कर हैरान था | उसकी ऐसी हालत देख कर विक्रम ने कहा कि बस इतने में ही ये हाल है | यहाँ हर साल योगा का कोई नया प्रकार आ जाता है और उस के अनुसार लेटेस्ट योगा के हिसाब से अपडेट रहना बहुत जरुरी है वरना योगा से योग में डिमोशन होते भी देर नहीं लगती | रोप योगा, हॉट योगा, पॉवर योगा के बाद इस बार बीयर योगा की धूम है | इस से युवा भी योगा की ओर आकर्षित हो रहे हैं | रोप योगा में सर्कस की सुंदरियों की तरह रस्से से लटक कर योगा किया जाता है | कठिन होने के कारण ये अधिक पोपुलर नहीं हुआ | इसका स्थान हॉट योगा ने लिया |
ये सुन कर बेताल बोल पडा कि जैसे योग से योगा बना वैसे ही हठयोग से हॉट योगा बना, है न ? ये सुन कर राजा विक्रम ने उसे लगभग हड़काते हुए कहा, जब पता न हो तो हर बात में बीच में न बोला करो | बता तो रहे हैं | अब तुम्हारे बीच में टोकने से हम कुछ भूल गए तो हमारे ही सर के  टुकड़े होंगें | हॉट योगा शरीर को हॉट बनाने के लिए हॉट सुंदरियों की संगति में किया जाने वाला योगा है | इस से शरीर हॉट हो न हो, मन तो हॉट हो ही जाता है | साल दर साल हॉटनेस बढ़ते जाने के कारण कूल बनने के लिए पॉवर योगा आया | इसे सिनेमा की सुंदरियों ने अपनी सीडी लांच के जरिये प्रोमोट किया | सौन्दर्य के दीवानों ने इसे हाथोंहाथ लिया | इसे करने से औरों को चाहे लाभ न भी हुआ हो किन्तु उन सुंदरियों को विशेष लाभ हुआ | लेकिन जैसे ही उन सुंदरियों का कैरियर ढलान की ओर बढ़ा वैसे ही पॉवर योगा भी अस्त होने लगा | इसी कड़ी में फिलहाल बीयर योगा ने दस्तक दी है | युवा वर्ग इसके आने की आहट मात्र से ही प्रफुल्लित है | नशाबंदी के इस दौर में उसके लिए इस से बेहतर कुछ हो नहीं सकता |
बेताल ये सब सुन कर स्तब्ध था | राजन उसे इस हाल में देख कर थोड़े चिंतित हुए और पूछा कि क्या हुआ, अब किस सोच में डूबे हो ? बेताल राजन के कंधे से उतर कर पेड़ पर वापस जाते हुए बोला कि योग का योगा में परिवर्तन कर क्या हाल बना दिया है | बेताल ये कह कर पेड़ पर जा कर उलटा लटक गया | राजा को समझ नहीं आया कि वह उनके जवाबों से संतुष्ट हुआ या ट्री योगा करने लगा | वह इस बारे में बेताल से पूछ भी नहीं सकते थे क्योंकि सवाल करना तो  बेताल का काम है | विक्रम का काम तो सिर्फ जवाब देना है |
                                                       

शनिवार, 22 जुलाई 2017

चायनीज इंडियन




हमारे शहर में पिछले दिनों एक नया रेस्टोरेंट खुला | था तो वह एक थ्री स्टार रेस्तरां ही लेकिन ताजा-ताजा हुए शहर में यह किसी पांच सितारा रेस्तरां से कम हैसियत न रखता था | उसके मालिक शहर के इकलौते रईस भागमल थे | भागमल के बारे में यह प्रसिद्ध था कि वो जिस चीज में भी हाथ लगाते वो सोना उगलने लगती थी | मतलब बस यही कि भागमल वो पारस पत्थर थे जो जिसे छू ले वो सोना बन जाए | रेस्तरां खुला तो जैसी की अपेक्षा थी फैशन के मुताबिक़ चायनीज रेस्तरां का बोर्ड लगाया गया |
वैसे तो हमारे शहर में ठेलों पर भी चाओ-मिन, मंचूरियन और मोमोज मिल जाते थे, लेकिन रेस्तरां का दबदबा बनाने के लिए उसकी सज्जा भी चायनीज रखी गयी | और तो और उसके वेटर भी चायनीज ही थे | जैसे ही कोई ग्राहक अन्दर आता, ये दोहरे हो के कोर्निश की मुद्रा में झुक कर स्वागत करते | और यही झुकना आर्डर लेने से ले कर ग्राहक के जाने तक जारी रहता | चाहे ग्राहक खाने की तारीफ़ करे या बुराई, वेटर बस झुक कर चिन-हुआहुआ ही कहते | बड़ा जबरदस्त इम्प्रैशन पड़ता ग्राहक पर | इस प्रकार रेस्तरां तो चल निकला |
अब एक दिन ऐसे ही किसी वेटर झुक कर चिन-हुआहुआ कहने को हुआ ही था कि उसके द्वारा रात के खाए हुए मूली के परांठे सशब्द उद्घोष कर बैठे | ये तो सबको पता ही था कि संकट काल में मातृभाषा ही याद आती है | तो वेटर के मुँह से हडबडाहट में चिन-हुआहुआ की जगह माफ़ कीजियेगा निकल गया | और दुर्योग से उस वक़्त खुलासा टाइम्स के सनसनीखेज रिपोर्टर वहीँ मौजूद थे | बस फिर क्या था | अगली सुबह रेस्तरां के चायनीज वेटरों के चायनीज न होने की  खबर शहर भर की जुबान पर थी | भागमल के विरोधियों को इससे अच्छा मौक़ा मिला | उन्होंने भागमल पर तरह-तरह के आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उन्होंने जनता को धोखे में रखा |
आरोपों की बौछार से त्रस्त हो कर भागमल ने अपनी सफाई देने के लिए खुलास टाइम्स के टीवी चैनल पर खुद आ कर स्पष्टीकरण देने का फैसला किया | नियत समय पर पूरा शहर इस इवेंट को देखने के लिए सांस रोक कर टीवी के सामने बैठ गया | इवेंट था तो प्रायोजक  आने ही थे | खैर, जैसे-तैसे कार्क्रम आरम्भ हुआ | पहला आरोप लगते ही भागमल प्रस्तोता पर हावी हो गए | उसने यह पूछ लिया कि आपने रेस्तरां खोलते समय इसके चायनीज होने के बड़े-बड़े दावे किये थे, जिनमे वेटर से ले कर रसोइये तक के चायनीज होने की बात कही गयी थी |
बस फिर क्या था, भागमल तो जो धाराप्रवाह शुरू हुए कि शहर वासियों को उनमे अपना भावी नेता दिखने लगा | उन्होंने कहा कि बताइये मैंने क्या कहा था ? यही न, कि सारा स्टाफ चायनीज होगा | तो गलत कहाँ कहा ? चायनीज ही तो हैं ये | चायनीज का अर्थ पता है ? जहाँ जो है वहाँ वो न हो के कुछ और होता है वो चायनीज होता है | चायनीज का अर्थ अस्थायी होता है, जो सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल किया जा सके | चायनीज का अर्थ अल्पजीवी होता है | ये बात एंकर समेत बहुतों को समझ में नहीं आई |
यह भांपते ही भागमल ने समझाने की प्रक्रिया का थोड़ा सरलीकरण किया | वे बोले, चीन से हमारे सम्बन्ध युगों से रहे हैं | इतिहास में भी इसका वर्णन है | ज्यादा पीछे न जाते हुए आजादी के काल में पहुंचते हैं | आजाद भारत में हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया गया था | अब बताइए क्या हिंदी और चीनी भाई लगते हैं ? उस नारे को तो वहीँ लड़ाई में दफ़न कर दिया गया था | उसके अलावा हमारा उनसे सीमा विवाद भी है | विवाद के बावजूद हममें व्यापार भी होता है और भरपूर होता है |
हमारे बाजार चीन से बने सामानों से अटे पड़े हैं | उन सामानों की क्वालिटी हमारे गाँवों में बने सामानों से भी बदतर होती है | इतनी कि अब हम चायनीज माल को निकृष्ट माल समझते हैं | कोई भी चीज जो न चल रही हो या जिसकी गुणवत्ता के बारे में संदेह हो, वो चायनीज कहलाती है | तो गर मैंने अपने रेस्तरां में चायनीज का ठप्पा लगाया तो गलत कहाँ है ? मैंने ये कब कहा था कि मेरे यहाँ चीन से आये हुए असली चायनीज वेटर ही काम करेंगे ? चायनीज से ही आपको समझ जाना चाहिए था कि गारंटी की कोई बात न होगी |
इस पर एंकर बोला कि असली चायनीज खाने की बात जो कही थी आपने,  उसका क्या ? वे तपाक से बोले, असली चायनीज यहाँ खाता कौन है ? जब तक असली चायनीज में हींग-जीरे का तड़का न लगे, तब तक हिन्दुस्तानी हलक से नीचे कौर न उतरे | मोमोज की भी हमने फ्राइड वैरायटी ईजाद कर ली है, क्योंकि उबला, भाप में पका यहाँ कितने खा सकेंगे ? फिर उन्होंने देशभक्ति कार्ड खेलते हुए भावविभोर हो कर कहा, चायनीज प्रोडक्ट के हमारे बाजारों में कब्जे से हमारे लोगों के रोजगार में जो कमी आई है मैंने तो उनमें से कुछ लोगों को रोजगार दे के बस वही कमी पूरी की है | वे चायनीज तरह के कपडे पहन कर और मेकअप कर के कमाई कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है | उन्होंने हमारे रोजगार हथियाए | बदले में हमने उनका स्वाद हथिया लिया | कल को असली चायनीज बोल के मंचूरियन में जब लौकी के कोफ्ते तैरेंगे तब गर्व से सीना हम हिन्दुस्तानियों का ही तो चौड़ा होगा | हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे की आड़ में हमने जो शिकस्त खाई मैं तो सिर्फ उसी का बदला ले रहा हूँ |
आगे समाचार ये है कि टीवी पर इस सीधे प्रसारण को देख कर भागमल को एम.एल.ए. का टिकट ऑफर करने वालों का तांता लगा हुआ है | आजकल हर पार्टी को ऐसा ही उम्मीदवार चाहिए जो शब्दों को तोड़ मरोड़ कर उसे जनता में अपने पक्ष में प्रस्तुत कर सके और विपक्षियों की धज्जियां उड़ा सके | ऐसे माहौल में भागमल जैसों का भविष्य उज्जवल है | ईश्वर करे उनका कैरियर चायनीज न निकले बल्कि चायनीज इंडियन सा निखरे | 

बुधवार, 12 जुलाई 2017

बारिश की शिकायत



 
एक बार भगवान जी के दरबार में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम ही था और ये होना स्वाभाविक ही था | नेता तो आग उगलते हुए भाषण देने वाला ही होना चाहिए वरना उसके चेले-चपाटों में जोश कहाँ से आयेगा ? और आग उगलने के लिए गर्मी से बेहतर चॉइस और कोई हो भी नहीं सकती थी | तो भगवान जी हमेशा की तरह शेष-शय्या पर लेटे लक्ष्मी जी से पैर दबवा रहे थे | उन्होंने गर्मी से भरी गर्मी की तेज आवाजें सुनीं तो अपनी आँखें खोल सबको निहारा | उत्तेजना से गर्मी का चेहरा लाल हो रहा था | उसके पीछे सर्दी भी तख्ती थामे खड़ी थी | सबसे पीछे बेचारा बरसात का मौसम सर झुकाए खडा था जैसे ससुराल में नई बहू से कोई नुकसान हो जाए और वो बेचारी सर झुकाए सारे अभियोग सुने |
भगवान जी ने माहौल की गर्माहट को कम करने के लिए चुहल की और बोले | भई, तुम तो वैसे ही इतने गर्म हो अब और गर्मी दिखा कर क्या हमारे क्षीरसागर को सुखाने का इरादा है ? गर्मी का मौसम बेचारा खिसिया गया | पर अपने अभियोग को चुहल से हल्का होते देख वह पुनः तमतमा   उठा | बोला, आपने हम सब को समान बनाया था | लेकिन अब बस इस बरसात की ही पूछ होती है | आपने हम सब के साथ साथी दिए हैं | हमारे साथी किसी काम के नहीं और देखिये इस बरसात को | ये और इसके साथियों ने सारे संसार में धूम मचा रखी है | हमें तो कोई पूछता ही नहीं | अब हम सब के साथ पक्षपात हो और हम शिकायत भी न करें ?   
भगवान जी ने पूछा, आखिर माजरा क्या है ? आखिर बरसात से समस्या किस बात से है ? अपने साथियों से या इसके साथियों से ? गर्मी और सर्दी एक सुर में बोल पड़े, प्रभु दोनों से | हमारे साथ आपने पसीना, चिपचिपाहट, घमौरी, बदबू और सर्दी के साथ कंपकंपी, पाला दे डाला | ये सारे साथी ऐसे हैं जो लोगों को प्रिय नहीं | अब ऐसे में कौन हमारे पास आना चाहेगा | कोई कवि हम पर कविता नहीं लिखता | हम पर फ़िल्में नहीं बनतीं | ऐसा अनरोमांटिक बना दिया प्रभु कि सब हमारे जल्दी सिधारने की कामना करते हैं | 
इधर इसके पास बादल, बिजली, छींटे, बौछार सब हैं | रोमांस के सारे अवयव | कवि इसके लिए रचना क्या पूरा खंड-काव्य लिख चुके हैं | नायिकाएं भी इसके ही गुण गातीं है | अब आप ही बताइये नायिकाएं कहीं पसीनों में भींगती अच्छी लगतीं हैं | फिर कोई उन पर क्यों कुछ लिखेगा | कुछ तो न्याय करिए प्रभु | हमारे भी साथी बदलिए |  
प्रभु मुस्कुराते हुए सब शिकायतें सुनते रहे | फिर बारिश को आगे बुलाया और उसे पुचकार कर पूछा, ये मैं क्या सुन रहा हूँ ? तुम्हारे खिलाफ इतनी शिकायतें ! बात वैसे उनकी गलत भी नहीं है | और कल को वो अपनी पे आ जाएँ और गर्मी अपने मौसम में तेवर न दिखायें तो तुम्हारा तो नम्बर ही नहीं आ पायेगा | अब बताओ, न गर्मी पानी को सुखायेगा, न बादल बरसेंगे | फिर कहाँ जाओगे भला?  
इतना सुनते ही बारिश तो फूट-फूट कर रो पड़ी | बोली, प्रभु, आप भी पूरा माजरा न जान कर बस सुने हुए को सच मान रहे | अब उसे रोता देख प्रभु चकराए कि यहाँ तो दोनों ही पक्ष दुखी हैं | बोले पूरी बात खुल कर समझाओ | बारिश ने आंसू पोंछते हुए कहा | दरअसल, ये सब भ्रम है | मेरी हालत ऐसे बच्चे जैसी है जिसके बारे में सब सोचते हैं कि वो शिक्षकों का प्रिय है | जबकि वो ये नहीं जानते कि उसे प्रिय होने का क्या-क्या दंड भुगतना पड़ता है | इधर वो सहपाठियों की ईर्ष्या तो झेलता ही है और उधर शिक्षक भी उसे कौड़ी का तीन नहीं गिनते | सबको बारिश का रोमांस दिखता है | बिजली, बादल दिखते हैं | लेकिन इसके पीछे के हालात नहीं दिखते |
सबको रोमांटिक मौसम दिखता | ये कोई नहीं देखता कि आपने सिर्फ मेरे ही दो मालिक बनाये हैं | मुझे दो देवों के आदेश मानने पड़ते हैं | कभी वरुण देव की सुनो तो इंद्र देव रूठ जाते हैं | फिर बिना बादल के ही बरसना पड़ता है | बिन बादल बरसने जाना ऐसे लगता है जैसे बिना हेलमेट बाइक चलाना | ज्यों बिना अस्त्र-शस्त्र युद्ध के मैदान में उतरना | इंद्र देव की सुनो तो वरुण देव जल की सप्लाई रोक लेते हैं | तब खाली गरज के आना पड़ता है | इन दोनों देवों के टसल में ही जो गरजते हैं वो  बरसते नहीं कहावत तैयार हुई | और किसी के हैं दो देव ? मैं तो किसी से शिकायत नहीं करता |
अब आगे सुनिए | बारिश करने निकलो तो  किसी को अचार सुखाने होते हैं तो किसी को पापड़ | बरस जाओ तो उनकी गाली खाओ | न बरसो तो उनके पड़ोसियों की | इनके साथ तो ये आधा-अधूरे वाला टंटा नहीं है | और हर बारिश के बाद पकोड़ों की रस्म के चक्कर में हर घर में औरत दुखी है | अब तो धरती वालों ने अपनी बिजली की व्यवस्था कर ली है जो बारिश में ठप पड़ जाती है | अब इंसान हमारी बादल की सखी बिजली के बिना रह सकता है लेकिन अब उसे अपनी बिजली के बिना एक पल भी रहना गवारा नहीं | उसे बिजली इतनी प्रिय हो गयी है कि वो बिना बारिश के रहने को तैयार हुए जा रहा है |
जल्द ही ऐसा भी होने वाला है जब वो बारिश भी खुद ही करा लेगा | मेरे तो  अस्तित्व पर ही संकट छा रहा है और इधर ये मुझे सर्वप्रिय समझ रहे | प्रभु, इन्हें चाहे प्रिय न मानें किन्तु इन्हें मिटाने  की बात तो कोई नहीं करता | इतना समझाने के बाद भी मोर्चा निकाल लाये | आप ही समझाईये इन्हें | उधर प्रभु निर्णय सुनाना भूल इस सोच में डूबे हैं कि इंसान कहीं दूसरे भगवान् का निर्माण न कर ले | 

शनिवार, 8 जुलाई 2017

जी.एस.टी. के जलवे



सरकारें सता में आतीं है | सरकारें नई योजनायें बनातीं हैं | फिर सरकारें उन योजनाओं को लागू करवाती हैं | इसमें कुछ योजनायें लागू होतीं हैं कुछ नहीं | योजनायें दरअसल सरकारों के बच्चे होते हैं | इसीलिए वो उन्हें बहुत प्रिय भी होतीं हैं | अब जैसे बहुत से बच्चों में से कोई बच्चा ज्यादा तेज होता है कोई जरा कम और कोई तो बिलकुल नाकारा | उसी तरह योजनाओं में से कोई टिंच होती है कोई फुस्स | जिसमें खाने-कमाने के अवसर ज्यादा हों वो टिंच और जिसमे कम हों वो फुस्स | लेकिन ऐसी कोई योजना आज तक नहीं बनी जिसमे कोई अवसर हो ही नहीं | सरकारें घाटे का कोई काम नहीं करतीं | जिस प्रकार नालायक बच्चा भी जूते गाँठ के घर में चवन्नी ले ही आता है, वैसे ही हर एक योजना किसी न किसी का भला तो करती ही है | अब ये और बात है कि जिसका भला करने की कोशिश की गयी हो उसके बजाय किसी और का भला हो गया हो | और सरकार का भला तो सबसे होता ही है |
कई बार ऐसा भी होता है कि कोई योजना किसी और सरकार ने शुरू की लेकिन वो पूरी होते-होते सरकार बदल जाती है | फिर बदली हुई सरकार उस योजना का नाम बदला कर उसे अपने नाम कर श्रेय ले लेती है | यह कुछ ऐसा ही है जैसे राह चलते किसी बच्चे को गोद लिया जाए और उसे अपना नाम दे कर पुण्य कमाया जाए | हालांकि आजकल इस पर बहुत तकरार होने लगी है कि फलां योजना अमुक नेता ने शुरू की थी इसलिए वो अमुक नेता की हुई | लेकिन खुद ही बताइए जो नेता वापस सत्ता में न आ सके उस नेता के नाम योजना कर उसका भाव क्यों गिराना | वैसे भी इतिहास गवाह है कि नाम तो जीतने वाले का ही होता है | शिलालेख तो उसी का लगता है | अभी तक ऐसा सड़क, पुल वगैरह में हुआ करता था, फिलहाल अब ऐसा जी.एस.टी. में भी हुआ है |
विपक्ष कह रहा है कि ये जी.एस.टी की स्कीम वे लाये थे और तब के विपक्ष जो अब सत्ता में हैं, ने इसका पुरजोर विरोध किया था | उनके इसी विरोध के कारण हम ये नहीं ला पाए थे | अब आज के सत्ता पक्ष उन्हें  अंगूठा दिखाते हुए कह रहे हैं कि हमारी जी.एस.टी. नई-नवेली है | आपके जी. एस.टी. में वो फीचर नहीं हैं जो हम ले के आये हैं | हमने इसमें बाय वन, गेट थ्री की तर्ज पर चार स्लैब बनाये हैं | अब जब आप कुछ भी खरीदने जायेंगे, आप यह तो पता कर ही लेंगे कि उस वस्तु पर कितने प्रतिशत टैक्स है | साथ ही आपका अच्छा ख़ासा रिवीजन भी हो जाएगा कि कौन सी वस्तु कितने प्रतिशत टैक्स के दायरे में है | इस तरह पूरी जनता की याददाश्त दुरुस्त रहेगी | इसके साथ ही जी.एस.टी. से सरकार पर पैसों की भरमार हो जायेगी जो आप ही का भला करने के लिए नई योजनाओं को बनाने में खर्च की जायेगी |
योजनाओं को चलाने के लिए पैसों की जरुरत पड़ती है | योजनायें सिर्फ जबानी जमाखर्च से नहीं चलतीं | सरकार के नुमाइंदे भले ही योजनाओं में से करोड़ों रूपये कमा लें लेकिन योजनाओं में लगाने के लिए धन हमेशा कम ही रहता है | इस कमी को पूरी करने के लिए सरकार टैक्स लगाती है | टैक्स वो रकम है जो सरकार जनता से उसकी भलाई के कामों में लगाने के लिए जबरिया लेती है | मतलब कुछ यूँ कि अपना बायाँ कान अपने बायें हाथ से न पकड़ कर दाहिने हाथ से पकड़ना | सरकार इस प्रकार जनता के कान पकड़ती है कि उसे पता ही नहीं चलता कि कान पकडे भी गए हैं | उसे पता तब चलता है जब कान खिंचने शुरू होते हैं | अब जनता तो जनता ही है उसकी क्या मजाल जो अपने कान छुड़ा ले | कान तो खिंचने ही  हैं | जनता के हाथ में सिर्फ यही प्रार्थना करना है कि कान जरा कम जोर से खिंचें |  
ये कुछ ऐसे ही है जैसे अब नए लागू हुए जी एस टी में टैक्स की अलग-अलग दरों से पता चल रहा है कि अब तक उसके कान कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे खींचे जा रहे थे | अब वो बेचारी सकपकाई सी खड़ी है | उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वो रोये कि अब तक वो कितनी तरह के कितने ज्यादा टैक्स दे रही थी या खुश हो अब उसे कम टैक्स देना पडेगा | उस समझ में आये भी तो कैसे भला, जब उसे समझाने को उतारू बैठे एक से एक विशेषज्ञों की समझ में कुछ नहीं आ रहा | सभी खुद को सही मान रहे | सभी विशेषज्ञ अपने तर्कों से एक दूसरे की बोलती बंद कर रहे हैं और आपस में इस तरह लड़े जा रहे हैं कि लगता है विश्व युद्ध इसी मुद्दे पर होगा कि जी.एस.टी. देश के लिए अच्छी साबित होगी या बुरी |
अब जो हमने जी.एस.टी. पर इतना लिख मारा है तो एक शंका सर उठा रही है कि कहीं लिखना भी टैक्स के दायरे में न आ चुका हो | और जो सच्ची आ ही गया हो तो वो कौन सी  स्लैब में रखा गया है ? हम इतना टैक्स देंगे कहाँ से ? इन सब सवालों के जवाबों के लिए हमें किसी सस्ते से सी.ए. को खोजना पडेगा | आप लोग अपनी देखिये | जय राम जी की |

बोंसाई सी लड़की

कभी देखें हैं बोन्साई  खूबसूरत, बहुत ही खूबसूरत लड़कियों से नही लगते? छोटे गमलों में सजे  जहां जड़ें हाथ-पैर फैला भी न सकें पड़ी रहें कुंडलियों...