सुनो, बन चुकी हूँ मैं वो दरख़्त,
जिसके नीचे हम मिला करते थे ,
औ जहाँ छोड़ तुम मुझे चल दिए थे,
हो के सवार अपनी फटफटिया पे।
मैं पीछे और पीछे छूटती जा रही थी,
और तुमने न देखा पलट के कभी,
तो अब क्यों देते हो इल्जाम कि ,
मैं गयी तुम्हे भूल
जबकि मैं तो वहीँ हूँ , आज भी ,
बन के दरख़्त वही।
शुक्रवार, 27 नवंबर 2015
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बोंसाई सी लड़की
कभी देखें हैं बोन्साई खूबसूरत, बहुत ही खूबसूरत लड़कियों से नही लगते? छोटे गमलों में सजे जहां जड़ें हाथ-पैर फैला भी न सकें पड़ी रहें कुंडलियों...
-
एक बार भगवान जी के दरबार में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम ही था और ये होना स्वाभावि...
-
हमारे शहर में पिछले दिनों एक नया रेस्टोरेंट खुला | था तो वह एक थ्री स्टार रेस्तरां ही लेकिन ताजा-ताजा हुए शहर में यह किसी पांच सितार...
-
मैं खरा बोलता हूँ, यही थी राय सबों की मेरे बारे में कड़वा न कह बस खरा कह अपने कहे को मृदु बनाते थे लोग, खरा न सह पाने के कारण दूरी बनाते...
👌👌👌shabdon ki kami lag rahi aaj tareef k liye
जवाब देंहटाएं👌👌👌shabdon ki kami lag rahi aaj tareef k liye
जवाब देंहटाएं