गुरुवार, 2 नवंबर 2023

तुम सा चांद

चांद मुझे तुम सा लगता है, 

तुम सा ही लुभावना, 

अपनी ही कलाओं में खोया, 

तुम्हारी मनःस्थिति सा

कभी रस बरसाता तो कभी तरसाता

कभी चांदनी से सराबोर करता 

तो कभी लुप्त हो जाता, 


 चांद का होना नियत है

युगों युगों से सतत, अनवरत, 

अडिग, निश्चित पथारूढ, 

पर तुम, 

निश्चितता और तुम्हारा 

कोई दूर का सा नाता है,

पल में तोला पल में माशा सा

मनमौजी रहना तुम्हें भाता है, 


पर तुमसे छिपा के तुम्हें 

एकटक देखना बहुत सुहाता है 

और चांद को जो एकटक देखता है

उसके सम्मोहन में पड़ जाता है, 

फिर भी चांद मुझे तुम सा लगता है

न जाने क्यूं।

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