बुधवार, 12 जुलाई 2017

बारिश की शिकायत



 
एक बार भगवान जी के दरबार में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम ही था और ये होना स्वाभाविक ही था | नेता तो आग उगलते हुए भाषण देने वाला ही होना चाहिए वरना उसके चेले-चपाटों में जोश कहाँ से आयेगा ? और आग उगलने के लिए गर्मी से बेहतर चॉइस और कोई हो भी नहीं सकती थी | तो भगवान जी हमेशा की तरह शेष-शय्या पर लेटे लक्ष्मी जी से पैर दबवा रहे थे | उन्होंने गर्मी से भरी गर्मी की तेज आवाजें सुनीं तो अपनी आँखें खोल सबको निहारा | उत्तेजना से गर्मी का चेहरा लाल हो रहा था | उसके पीछे सर्दी भी तख्ती थामे खड़ी थी | सबसे पीछे बेचारा बरसात का मौसम सर झुकाए खडा था जैसे ससुराल में नई बहू से कोई नुकसान हो जाए और वो बेचारी सर झुकाए सारे अभियोग सुने |
भगवान जी ने माहौल की गर्माहट को कम करने के लिए चुहल की और बोले | भई, तुम तो वैसे ही इतने गर्म हो अब और गर्मी दिखा कर क्या हमारे क्षीरसागर को सुखाने का इरादा है ? गर्मी का मौसम बेचारा खिसिया गया | पर अपने अभियोग को चुहल से हल्का होते देख वह पुनः तमतमा   उठा | बोला, आपने हम सब को समान बनाया था | लेकिन अब बस इस बरसात की ही पूछ होती है | आपने हम सब के साथ साथी दिए हैं | हमारे साथी किसी काम के नहीं और देखिये इस बरसात को | ये और इसके साथियों ने सारे संसार में धूम मचा रखी है | हमें तो कोई पूछता ही नहीं | अब हम सब के साथ पक्षपात हो और हम शिकायत भी न करें ?   
भगवान जी ने पूछा, आखिर माजरा क्या है ? आखिर बरसात से समस्या किस बात से है ? अपने साथियों से या इसके साथियों से ? गर्मी और सर्दी एक सुर में बोल पड़े, प्रभु दोनों से | हमारे साथ आपने पसीना, चिपचिपाहट, घमौरी, बदबू और सर्दी के साथ कंपकंपी, पाला दे डाला | ये सारे साथी ऐसे हैं जो लोगों को प्रिय नहीं | अब ऐसे में कौन हमारे पास आना चाहेगा | कोई कवि हम पर कविता नहीं लिखता | हम पर फ़िल्में नहीं बनतीं | ऐसा अनरोमांटिक बना दिया प्रभु कि सब हमारे जल्दी सिधारने की कामना करते हैं | 
इधर इसके पास बादल, बिजली, छींटे, बौछार सब हैं | रोमांस के सारे अवयव | कवि इसके लिए रचना क्या पूरा खंड-काव्य लिख चुके हैं | नायिकाएं भी इसके ही गुण गातीं है | अब आप ही बताइये नायिकाएं कहीं पसीनों में भींगती अच्छी लगतीं हैं | फिर कोई उन पर क्यों कुछ लिखेगा | कुछ तो न्याय करिए प्रभु | हमारे भी साथी बदलिए |  
प्रभु मुस्कुराते हुए सब शिकायतें सुनते रहे | फिर बारिश को आगे बुलाया और उसे पुचकार कर पूछा, ये मैं क्या सुन रहा हूँ ? तुम्हारे खिलाफ इतनी शिकायतें ! बात वैसे उनकी गलत भी नहीं है | और कल को वो अपनी पे आ जाएँ और गर्मी अपने मौसम में तेवर न दिखायें तो तुम्हारा तो नम्बर ही नहीं आ पायेगा | अब बताओ, न गर्मी पानी को सुखायेगा, न बादल बरसेंगे | फिर कहाँ जाओगे भला?  
इतना सुनते ही बारिश तो फूट-फूट कर रो पड़ी | बोली, प्रभु, आप भी पूरा माजरा न जान कर बस सुने हुए को सच मान रहे | अब उसे रोता देख प्रभु चकराए कि यहाँ तो दोनों ही पक्ष दुखी हैं | बोले पूरी बात खुल कर समझाओ | बारिश ने आंसू पोंछते हुए कहा | दरअसल, ये सब भ्रम है | मेरी हालत ऐसे बच्चे जैसी है जिसके बारे में सब सोचते हैं कि वो शिक्षकों का प्रिय है | जबकि वो ये नहीं जानते कि उसे प्रिय होने का क्या-क्या दंड भुगतना पड़ता है | इधर वो सहपाठियों की ईर्ष्या तो झेलता ही है और उधर शिक्षक भी उसे कौड़ी का तीन नहीं गिनते | सबको बारिश का रोमांस दिखता है | बिजली, बादल दिखते हैं | लेकिन इसके पीछे के हालात नहीं दिखते |
सबको रोमांटिक मौसम दिखता | ये कोई नहीं देखता कि आपने सिर्फ मेरे ही दो मालिक बनाये हैं | मुझे दो देवों के आदेश मानने पड़ते हैं | कभी वरुण देव की सुनो तो इंद्र देव रूठ जाते हैं | फिर बिना बादल के ही बरसना पड़ता है | बिन बादल बरसने जाना ऐसे लगता है जैसे बिना हेलमेट बाइक चलाना | ज्यों बिना अस्त्र-शस्त्र युद्ध के मैदान में उतरना | इंद्र देव की सुनो तो वरुण देव जल की सप्लाई रोक लेते हैं | तब खाली गरज के आना पड़ता है | इन दोनों देवों के टसल में ही जो गरजते हैं वो  बरसते नहीं कहावत तैयार हुई | और किसी के हैं दो देव ? मैं तो किसी से शिकायत नहीं करता |
अब आगे सुनिए | बारिश करने निकलो तो  किसी को अचार सुखाने होते हैं तो किसी को पापड़ | बरस जाओ तो उनकी गाली खाओ | न बरसो तो उनके पड़ोसियों की | इनके साथ तो ये आधा-अधूरे वाला टंटा नहीं है | और हर बारिश के बाद पकोड़ों की रस्म के चक्कर में हर घर में औरत दुखी है | अब तो धरती वालों ने अपनी बिजली की व्यवस्था कर ली है जो बारिश में ठप पड़ जाती है | अब इंसान हमारी बादल की सखी बिजली के बिना रह सकता है लेकिन अब उसे अपनी बिजली के बिना एक पल भी रहना गवारा नहीं | उसे बिजली इतनी प्रिय हो गयी है कि वो बिना बारिश के रहने को तैयार हुए जा रहा है |
जल्द ही ऐसा भी होने वाला है जब वो बारिश भी खुद ही करा लेगा | मेरे तो  अस्तित्व पर ही संकट छा रहा है और इधर ये मुझे सर्वप्रिय समझ रहे | प्रभु, इन्हें चाहे प्रिय न मानें किन्तु इन्हें मिटाने  की बात तो कोई नहीं करता | इतना समझाने के बाद भी मोर्चा निकाल लाये | आप ही समझाईये इन्हें | उधर प्रभु निर्णय सुनाना भूल इस सोच में डूबे हैं कि इंसान कहीं दूसरे भगवान् का निर्माण न कर ले | 

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभु निर्णय सुनाना भूल इस सोच में डूबे हैं कि इंसान कहीं दूसरे भगवान् का निर्माण न कर ले |-----bas yahi shesh bacha hai..behatreen!!

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  2. रिकार्ड किया ,भगवान सोच में पड़ गए ... 👍

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