शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

लफ्ज़, अंगारों से
दहकते, धधकते,
जलाते क़दमों को
लेकिन, क्लांत हो जलन से
बैठना न हो संभव
तो मौन का शीतल मलहम,
लगा तलवों पर
गुजरते जाना
जब तक कि
अंगारे राख न हों
और राख ठंडी हो
क़दमों को सुकून न दे।

3 टिप्‍पणियां:

काश

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