सोमवार, 21 अगस्त 2017

छेड़ते- छिड़ते रहो


हम में से कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसके साथ छेड़छाड़ न हुई हो या उसने न की हो | फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष | चौंकिए मत, पुरुष हालांकि छेड़छाड़ अधिक करते हैं किन्तु उनके साथ भी छेड़छाड़ होती है | और इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है | बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की उसके बचपन में गालों को खींच कर कूची कू करना छेड़छाड़ का आरंभिक प्रमाण है | ये गालों को नोचना बच्चों को छेड़छाड़ के लिए बचपन से ही तैयार किये जाने की प्रक्रिया है | इसके बाद मेहमानों के सामने पहाड़े, खैर अब इस कान्वेंट युग में तो टेबल्स सुनाये जाते हैं, या राइम सुनाये जाने वाली छेड़छाड़ की बारी आती है | इधर बच्चा बेमन से सेवेनटीन की टेबल सुनाता है और उधर मेहमान सर पकड़ सोचता है कब इस यातना से छुटकारा हो | इसलिए कभी कभी बीच में ही रोक कर शाबाशी दे जान छुड़ाता है |
खैर, ये तो थी बचपन की बात | जवानी तो मौसम ही छेड़छाड़ का है | ये हमें हमारी हिंदी फिल्मों ने बताया है | इनके अनुसार कॉलेज में एडमिशन होना प्यार करने की पात्रता पाना है | अब प्यार की शुरुआत ही छेड़छाड़ से होती है | जिस समाज में लड़का और लड़की के बात करने के अवसर न के बराबर हैं वहाँ लड़की का ध्यान आकर्षित करने के लिए छेड़छाड़ सफलतम फार्मूला है | अब छेड़छाड़ छाहे जुल्फों की हो या आँचल की | छिड़ते छिड़ते कभी न कभी तो मान ही जायेगी |आशावाद का इससे अच्छा उदाहरण क्या होगा भला | अब जमाने में थोड़ा परिवर्तन आया है तो इस छेड़छाड़ के खिलाफ थोड़ी आवाज उठने लगी है | लेकिन फिर भी “नो मीन्स नो” से एक ही फिल्म चलती है और छेड़छाड़ से सैकड़ों, तो बताइए सही क्या है ? इसी मनोदशा के आधार पर छेड़ते और छिड़ाते युगों बीत गए | विकास के इस युग में छेड़छाड़ के स्वरुप का विस्तार ही हुआ है | अब कॉलेज से इतर घर परिवार भी छिड़ा-छिड़ी की जद में आ गए हैं | रहे तो शायद पहले से ही होंगें लेकिन सूचना क्रांति के बाद अब अधिक उजागर होने लगे हैं |
सूचना क्रांति से याद आया, छेड़छाड़ अब सोशल मीडिया पर भी फ़ैल चुकी है | फेसबुक, व्हात्सप्प के इस दौर में एक पक्ष दूसरे की पोस्ट पर हमला करता है | इसे ट्रौल का नाम दिया गया है | एक हद के बाद यह वीभत्स होता जाता है | तब यह पोस्ट से पसर कर इनबॉक्स में पहुँच जाता है | स्क्रीनशॉट इस युग की बाप-भाई से पिटवाने की धमकी है | अंतिम विकल्प के तौर पर ब्लाकास्त्र का प्रयोग किया जाता है |
ये कम था कि “सराहाह” नामक एप ने छेड़छाड़ से पिटने का भय दूर कर इसे बेनामी रूप में पेश किया | अब तो जिसे देखो वह बेनामी ख़त का फायदा उठा चाहे जिसे छेड़े जा रहा है | और बेचारा छिड़ने वाला किससे शिकायत करे के अंदाज में खिसियाये बैठा है | हाँ, कुछ शर्मीलों के लिए ये वरदान सरीखा है जो इससे अपने दिल की बात बेझिझक कह पा रहे हैं | लेकिन उन्हें भी ये याद रखना होगा कि उनके दिल को छू लेने वाले खतों का फायदा कोई और उठा न ले | तो खूब छेडिये, और छिड़ीये लेकिन बस ये याद रखिये कि लड़की न माने तो ये समझ लें कि आप उसकी फिल्म के हीरो नहीं विलेन हैं |
नोट : यूँ तो छेड़छाड़ जिन्दगी के हर अंग में पैर जमाये बैठी है फिर चाहे वो किसी सी डी की फुटेज हो या ई वी एम की मशीन | यह तो “हरी अनंत हरी कथा अनंता” सी स्थिति है | इसलिए यहाँ छेड़छाड़ से जो अर्थ सबसे पहले ध्यान में आता है, उसी पर ध्यान जमाए रखा गया है |

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