शनिवार, 13 जुलाई 2024

काश

 जाने कैसे लोग होते हैं जिन्हें कोई regret कोई पछतावा नहीं होता। इतना सही कोई कैसे हो सकता है कि कुछ गलत न हुआ हो कभी भी उसकी जिंदगी में। अब इस पर ये कहा जा सकता है कि उसने गलत हुई चीजों को भी स्वीकार के दुरुस्त कर ली जिंदगी। पर ये तो adjustment हुआ न। 

यहां हजारों regrets हजारों पछतावे हैं। काश ये न हुआ होता, काश ये न किया होता। ये न कहा होता या फिर कह ही दिया होता। काश ये जिंदगी ही न होती । काश ये जद्दोजहद न होती कि कहा होता तो ये हो जाता। या फिर वो हो जाता या शायद कुछ भी न होता। क्या पता। जिंदगी का निचोड़ इस एक काश में है। काश इसका भी कोई दूसरा पहलू होता। पहलू तो है जो मौजूदा है, जो सामने है। जिसके मुखौटे  के पीछे काश छिपा होता है। वो छिप के झांकता है, उसकी झलक रह रह के सामने आती रहती है। वही झलक regret बन जाती है। सारा सार बस यही है कि जिंदगी एक "काश" बन चुकी है और ये काश की कश्मकश कलेजा मथती जाती है। 

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

बोंसाई सी लड़की

कभी देखें हैं बोन्साई 

खूबसूरत, बहुत ही खूबसूरत

लड़कियों से नही लगते?

छोटे गमलों में सजे 

जहां जड़ें हाथ-पैर फैला भी न सकें

पड़ी रहें कुंडलियों सी मारे,

जैसे कैद हो लड़कियां घरों में

जगह- जगह तारों से उमेठी हुई

बढ़वार थामती हुई सी,

काटे जाते तराशे जाते,

एक सुन्दर सा आकार दे कर 

 सजा कर  ड्राइंग रूम में 

रख दिए जाते 

लोगों की प्रशंसा के लिए 

इतनी सुन्दर बना के कि 

दिखाई न दे इसके पीछे की

वो टूटन , 

वो फ़ैल न पाने ,बढ़ न पाने

स्वाभाविक स्वरुप न पाने की यंत्रणा, 

लेकिन, फिर भी

खूबसूरत, बेहद खूबसूरत ।

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

तुम सा चांद

चांद मुझे तुम सा लगता है, 

तुम सा ही लुभावना, 

अपनी ही कलाओं में खोया, 

तुम्हारी मनःस्थिति सा

कभी रस बरसाता तो कभी तरसाता

कभी चांदनी से सराबोर करता 

तो कभी लुप्त हो जाता, 


 चांद का होना नियत है

युगों युगों से सतत, अनवरत, 

अडिग, निश्चित पथारूढ, 

पर तुम, 

निश्चितता और तुम्हारा 

कोई दूर का सा नाता है,

पल में तोला पल में माशा सा

मनमौजी रहना तुम्हें भाता है, 


पर तुमसे छिपा के तुम्हें 

एकटक देखना बहुत सुहाता है 

और चांद को जो एकटक देखता है

उसके सम्मोहन में पड़ जाता है, 

फिर भी चांद मुझे तुम सा लगता है

न जाने क्यूं।

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

Mindful talking

Talking your heart out is a dangerous thing. You just can't bare your heart in front of anyone, not even to your closest ones. 

        You talk about your feelings in bits and pieces in front of select few, that too not in totality. You share something with one and something other with another. But you can't bare all to one single person. 

        Some say that you should share with strangers or random people, whom you never meet again. It might work for some with some minor stuff. But major and intimate stuff is not something to be discussed with strangers. 

         In fact, it should not be discussed with anyone. For not knowing about you is your strength. The moment they know about you, you become vulnerable. And believe it or not, even the closest one will hit you on your most vulnerable spot the minute they get a thing against you. 

       So dont ever talk your heart out, it's better to let your mind do the talking. 

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

बुलेट ट्रेन का इन्तजार करते हुए

  
सुना है अब सच ही बुलेट ट्रेन आ रही है | हालांकि बहुत दिनों से इसके आने के हल्ले थे लेकिन अपने यहाँ कोई आते-आते आ जाए तब ही उसे आया माना जाता है | अभी तक यह सिर्फ कागजों पर ही आई थी | खैर, कागजों का क्या है | कागजों पर तो विकास भी कब का आ चुका है | अभी तक तो नहीं दिखा | सुनते हैं विकास जड़ों की तरह पहले भीतर ही भीतर पनपेगा उसके बाद ही बाहर उसकी फूल पत्तियाँ प्रकट होंगीं | इसलिए फिलहाल विकास सरकार में भीतरी तौर पर नेताओं और अधिकारियों के बीच ही पनप रहा है | जब उनका मुँह भर जाएगा तब जनता में भी विकास के  दर्शन होंगे | लेकिन यह जनता भी कितनी भोली है जो यह नहीं जानती कि नेताओं और अधिकारियों का मुँह सुरसा की तरह है | जितनी अधिक रकम विकास के लिए आवंटित होती है यह मुँह उतना ही फैलता चला जाता है |
खैर, बात बुलेट ट्रेन की हो रही थी और विकास तक जा पहुंची | वैसे यह बुलेट ट्रेन भी विकास के पैरामीटरों में से एक है क्योंकि बुलेट ट्रेन किसी भी पिछड़े मुल्क में नहीं है | इसलिए सबको विकास दिखलाने के लिए भी इसका लाया जाना जरुरी था | भूमि-पूजन हो चुका और 2022 तक यह चलने भी लगेगी | तब तक जनता इसके लिए पटरियाँ बिछाए जाने और इसके डब्बों के ताजे फ़ीचरों से मन बहलाती रहेगी | वैसे भी आम जनता की औकात तो इसमें सफ़र करने की नहीं होगी | औकात का क्या है वो तो अधिकाँश जनता की हवाई यात्रा की भी नहीं है | जिनकी है, ट्रेन सिर्फ उनके लिए ही दौड़ाई जा रही है | और जिनकी औकात बुलेट ट्रेन में बैठने की नहीं है वही इसे चलाये जाने के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं और सरकार हमेशा की तरह उठे हुए सवालों को कान पकड़ कर बैठा रही है | 
इन सवालों में से प्रमुख है कि बुलेट ट्रेन की क्या जरुरत है ? जितना खर्च कर एक बुलेट ट्रेन बन रही उतने में तो कितने हवाई जहाज आ जाएँ | लेकिन हवाई जहाजों के साथ ये बड़ी दिक्कत है कि इन्हें बीच रूट पे रोका नहीं जा सकता | जिस दिन चैन पुलिंग कर बीच हवा में हवाई जहाज रोके जाने लगेंगे उस दिन वो ट्रेन क्या ऑटो के स्तर पर आ जायेंगे | देश के वैज्ञानिकों को समानता लाने के इस विषय पर विशेष अनुसंधान करना चाहिए | साथ ही हवाई जहाज में जिस प्रकार सस्ते टिकटों की होड़ मची हुई है उससे उनका चार्म घट गया है | हवाई जहाजों के बाद किसी का भरपूर चार्म हुआ करता था तो वो हैं मेट्रो ट्रेन | लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार हर छोटे बड़े शहर में मेट्रो ट्रेन फैलती जा रही है उससे अब ये आकर्षण का केंद्र नहीं रहीं हैं | इसलिए फिलहाल जनता को आकर्षण का एक नया बिंदु देने के लिए बुलेट ट्रेन लाई गयीं हैं |   
जिस देश में ट्रेन का समय पर आना अजूबा समझा जाता है वहाँ इसका लेट न होने का रिकॉर्ड किस काम का? ट्रेन लेट न हो, समय पर पहुंचा दे तो लगता है कि टिकट के पैसे वसूल नहीं हुए | और हम लोग तो पैसे वसूल करने के साथ-साथ रेल विभाग से अपना हिस्सा तक वसूल कर लेते हैं | पहले सिर्फ रेलवे के बल्ब और पंखे गायब हुआ करते थे, अब बाथरूम के मग से ले कर नई ट्रेनों में लगी एल.सी.डी. स्क्रीन तक कुछ भी सुरक्षित नहीं बचा है | ऐसे में लगता है बुलेट ट्रेन के नए बने लेटेस्ट सुविधाओं वाले डिब्बों के सामान का बीमा तो टिकट के साथ ही कराया जाएगा | वरना अगले सफ़र से पहले बुलेट ट्रेन के बु, ले, और ट अलग अलग घरों में शोभा बढ़ा रहे होंगे | वैसे हर यात्री के साथ एक पहरेदार का भी प्रबंध किया जा सकता है |  
अपने यहाँ ट्रेन में यात्रा का अलग ही कल्चर है | घर से अचार पूड़ी बाँध कर ले जाना और उसके बावजूद रास्ते भर हर हॉकर से हर सामान को ले कर खाए बिना सफ़र मुकम्मल हुआ है भला? बुलेट ट्रेन इन यात्रियों के तो किसी काम की नहीं | वो ट्रेन ही क्या जिसमे कोई हॉकर हर 5 मिनट पर आ कर चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, समोसे, मूंगफली न बेचे | यह सरकार के स्किल इंडिया को करारा झटका भी है | यह नागरिकों के रोजी के अधिकार का हनन है | ट्रेन में आने वाले हॉकरों के साथ छोटे छोटे स्टेशनों पर चाय-नाश्ते के स्टाल वालों की कमाई पर कुठाराघात है ये | वैसे, किसी विपक्षी दल ने अभी तक इस मुद्दे पर गौर नहीं किया है वरना यह मुद्दा तो आन्दोलन लायक है |
कमाई तो ट्रेन के स्टाफ की भी कम होनी है | बर्थ एलौट भला कैसे की जायेगी जब बर्थ की जगह सीट्स ने ले ली हो | अब तो टी.टी. सिर्फ कंडक्टरों की तरह टिकट फाड़ने के काम ही आया करेंगे | उनके वो दिन तो हवा हुए ही समझो जब उनके पीछे-पीछे लोगों का झुण्ड एक बर्थ के लिए चिरौरी करता घूमता था |
अपने जैसे घनी आबादी वाले देश में जहाँ पटरियाँ सिर्फ ट्रेन चलाने के लिए ही नहीं बल्कि शौचालय के रूप में भी प्रयुक्त होतीं हों वहां बुलेट की रफ़्तार में उनके परखच्चे उड़ने की प्रबल संभावना है | इसके कारण पटरियों को विशेष सुरक्षा की दरकार होगी | वरना जहाँ अभी अलग अलग जगहों से दुर्घटना की खबरें आतीं हैं तब सिर्फ बुलेट के ट्रैक पर ही रोज दुर्घटनाओं का तांता लग जाएगा | और रोज घटने वाली घटनाओं के प्रति हम संवेदनशील नहीं रहते | इसलिए डर है कि कहीं हम रोज अखबार खोलते ही कहीं बुलेट का स्कोर न देखने लगें |
कितना अच्छा होता अगर बुलेट ट्रेन के खर्चे से पहले देश की सारी पटरियों का मेकओवर हो गया होता | कभी सोचा भी नहीं था कि दुर्घटना से देर भली के अपने नीति-वाक्य को सरकार यूँ खुद ही बिसरा देगी | और हम हमेशा की तरह सिर्फ दुआ करेंगे कि आइन्दा कहीं कोई दुर्घटना न हो |
  

सोमवार, 18 सितंबर 2017

मैं खरा बोलता हूँ,
यही थी राय सबों की मेरे बारे में
कड़वा न कह बस खरा कह
अपने कहे को मृदु बनाते थे लोग,
खरा न सह पाने के कारण
दूरी बनाते थे मुझसे लोग,
क्या करता मैं?
मिठास कहाँ से लाता
जब मीठे बोलों के लिए था खुद ही था तरसा
मीठे बोलों में छुपे आकंठ गरल
से बचने को तड़पा
नमक ही था भरा, बोली में
नमक, जो था मेरे पसीने की कमाई
मुझे घर बैठा के किसी ने रोटी न थी खिलाई
वही सूखे पसीने की धार 
है मेरी जुबां पे उग आई
अब नमक को चाशनी में कैसे घोलूँ
बताओ भला, मैं सच कैसे बोलूँ?

सोमवार, 21 अगस्त 2017

छेड़ते- छिड़ते रहो


हम में से कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसके साथ छेड़छाड़ न हुई हो या उसने न की हो | फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष | चौंकिए मत, पुरुष हालांकि छेड़छाड़ अधिक करते हैं किन्तु उनके साथ भी छेड़छाड़ होती है | और इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है | बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की उसके बचपन में गालों को खींच कर कूची कू करना छेड़छाड़ का आरंभिक प्रमाण है | ये गालों को नोचना बच्चों को छेड़छाड़ के लिए बचपन से ही तैयार किये जाने की प्रक्रिया है | इसके बाद मेहमानों के सामने पहाड़े, खैर अब इस कान्वेंट युग में तो टेबल्स सुनाये जाते हैं, या राइम सुनाये जाने वाली छेड़छाड़ की बारी आती है | इधर बच्चा बेमन से सेवेनटीन की टेबल सुनाता है और उधर मेहमान सर पकड़ सोचता है कब इस यातना से छुटकारा हो | इसलिए कभी कभी बीच में ही रोक कर शाबाशी दे जान छुड़ाता है |
खैर, ये तो थी बचपन की बात | जवानी तो मौसम ही छेड़छाड़ का है | ये हमें हमारी हिंदी फिल्मों ने बताया है | इनके अनुसार कॉलेज में एडमिशन होना प्यार करने की पात्रता पाना है | अब प्यार की शुरुआत ही छेड़छाड़ से होती है | जिस समाज में लड़का और लड़की के बात करने के अवसर न के बराबर हैं वहाँ लड़की का ध्यान आकर्षित करने के लिए छेड़छाड़ सफलतम फार्मूला है | अब छेड़छाड़ छाहे जुल्फों की हो या आँचल की | छिड़ते छिड़ते कभी न कभी तो मान ही जायेगी |आशावाद का इससे अच्छा उदाहरण क्या होगा भला | अब जमाने में थोड़ा परिवर्तन आया है तो इस छेड़छाड़ के खिलाफ थोड़ी आवाज उठने लगी है | लेकिन फिर भी “नो मीन्स नो” से एक ही फिल्म चलती है और छेड़छाड़ से सैकड़ों, तो बताइए सही क्या है ? इसी मनोदशा के आधार पर छेड़ते और छिड़ाते युगों बीत गए | विकास के इस युग में छेड़छाड़ के स्वरुप का विस्तार ही हुआ है | अब कॉलेज से इतर घर परिवार भी छिड़ा-छिड़ी की जद में आ गए हैं | रहे तो शायद पहले से ही होंगें लेकिन सूचना क्रांति के बाद अब अधिक उजागर होने लगे हैं |
सूचना क्रांति से याद आया, छेड़छाड़ अब सोशल मीडिया पर भी फ़ैल चुकी है | फेसबुक, व्हात्सप्प के इस दौर में एक पक्ष दूसरे की पोस्ट पर हमला करता है | इसे ट्रौल का नाम दिया गया है | एक हद के बाद यह वीभत्स होता जाता है | तब यह पोस्ट से पसर कर इनबॉक्स में पहुँच जाता है | स्क्रीनशॉट इस युग की बाप-भाई से पिटवाने की धमकी है | अंतिम विकल्प के तौर पर ब्लाकास्त्र का प्रयोग किया जाता है |
ये कम था कि “सराहाह” नामक एप ने छेड़छाड़ से पिटने का भय दूर कर इसे बेनामी रूप में पेश किया | अब तो जिसे देखो वह बेनामी ख़त का फायदा उठा चाहे जिसे छेड़े जा रहा है | और बेचारा छिड़ने वाला किससे शिकायत करे के अंदाज में खिसियाये बैठा है | हाँ, कुछ शर्मीलों के लिए ये वरदान सरीखा है जो इससे अपने दिल की बात बेझिझक कह पा रहे हैं | लेकिन उन्हें भी ये याद रखना होगा कि उनके दिल को छू लेने वाले खतों का फायदा कोई और उठा न ले | तो खूब छेडिये, और छिड़ीये लेकिन बस ये याद रखिये कि लड़की न माने तो ये समझ लें कि आप उसकी फिल्म के हीरो नहीं विलेन हैं |
नोट : यूँ तो छेड़छाड़ जिन्दगी के हर अंग में पैर जमाये बैठी है फिर चाहे वो किसी सी डी की फुटेज हो या ई वी एम की मशीन | यह तो “हरी अनंत हरी कथा अनंता” सी स्थिति है | इसलिए यहाँ छेड़छाड़ से जो अर्थ सबसे पहले ध्यान में आता है, उसी पर ध्यान जमाए रखा गया है |

काश

 जाने कैसे लोग होते हैं जिन्हें कोई regret कोई पछतावा नहीं होता। इतना सही कोई कैसे हो सकता है कि कुछ गलत न हुआ हो कभी भी उसकी जिंदगी में। अब...