सुना है अब सच ही बुलेट
ट्रेन आ रही है | हालांकि बहुत दिनों से इसके आने के हल्ले थे लेकिन अपने यहाँ कोई
आते-आते आ जाए तब ही उसे आया माना जाता है | अभी तक यह सिर्फ कागजों पर ही आई थी |
खैर, कागजों का क्या है | कागजों पर तो विकास भी कब का आ चुका है | अभी तक तो नहीं
दिखा | सुनते हैं विकास जड़ों की तरह पहले भीतर ही भीतर पनपेगा उसके बाद ही बाहर
उसकी फूल पत्तियाँ प्रकट होंगीं | इसलिए फिलहाल विकास सरकार में भीतरी तौर पर
नेताओं और अधिकारियों के बीच ही पनप रहा है | जब उनका मुँह भर जाएगा तब जनता में
भी विकास के दर्शन होंगे | लेकिन यह जनता
भी कितनी भोली है जो यह नहीं जानती कि नेताओं और अधिकारियों का मुँह सुरसा की तरह
है | जितनी अधिक रकम विकास के लिए आवंटित होती है यह मुँह उतना ही फैलता चला जाता
है |
खैर, बात बुलेट ट्रेन की हो
रही थी और विकास तक जा पहुंची | वैसे यह बुलेट ट्रेन भी विकास के पैरामीटरों में
से एक है क्योंकि बुलेट ट्रेन किसी भी पिछड़े मुल्क में नहीं है | इसलिए सबको विकास
दिखलाने के लिए भी इसका लाया जाना जरुरी था | भूमि-पूजन हो चुका और 2022 तक यह
चलने भी लगेगी | तब तक जनता इसके लिए पटरियाँ बिछाए जाने और इसके डब्बों के ताजे
फ़ीचरों से मन बहलाती रहेगी | वैसे भी आम जनता की औकात तो इसमें सफ़र करने की नहीं
होगी | औकात का क्या है वो तो अधिकाँश जनता की हवाई यात्रा की भी नहीं है | जिनकी
है, ट्रेन सिर्फ उनके लिए ही दौड़ाई जा रही है | और जिनकी औकात बुलेट ट्रेन में
बैठने की नहीं है वही इसे चलाये जाने के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं और सरकार हमेशा
की तरह उठे हुए सवालों को कान पकड़ कर बैठा रही है |
इन सवालों में से प्रमुख है
कि बुलेट ट्रेन की क्या जरुरत है ? जितना खर्च कर एक बुलेट ट्रेन बन रही उतने में
तो कितने हवाई जहाज आ जाएँ | लेकिन हवाई जहाजों के साथ ये बड़ी दिक्कत है कि इन्हें
बीच रूट पे रोका नहीं जा सकता | जिस दिन चैन पुलिंग कर बीच हवा में हवाई जहाज रोके
जाने लगेंगे उस दिन वो ट्रेन क्या ऑटो के स्तर पर आ जायेंगे | देश के वैज्ञानिकों
को समानता लाने के इस विषय पर विशेष अनुसंधान करना चाहिए | साथ ही हवाई जहाज में
जिस प्रकार सस्ते टिकटों की होड़ मची हुई है उससे उनका चार्म घट गया है | हवाई
जहाजों के बाद किसी का भरपूर चार्म हुआ करता था तो वो हैं मेट्रो ट्रेन | लेकिन
पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार हर छोटे बड़े शहर में मेट्रो ट्रेन फैलती जा रही
है उससे अब ये आकर्षण का केंद्र नहीं रहीं हैं | इसलिए फिलहाल जनता को आकर्षण का
एक नया बिंदु देने के लिए बुलेट ट्रेन लाई गयीं हैं |
जिस देश में ट्रेन का समय
पर आना अजूबा समझा जाता है वहाँ इसका लेट न होने का रिकॉर्ड किस काम का? ट्रेन लेट
न हो, समय पर पहुंचा दे तो लगता है कि टिकट के पैसे वसूल नहीं हुए | और हम लोग तो
पैसे वसूल करने के साथ-साथ रेल विभाग से अपना हिस्सा तक वसूल कर लेते हैं | पहले
सिर्फ रेलवे के बल्ब और पंखे गायब हुआ करते थे, अब बाथरूम के मग से ले कर नई
ट्रेनों में लगी एल.सी.डी. स्क्रीन तक कुछ भी सुरक्षित नहीं बचा है | ऐसे में लगता
है बुलेट ट्रेन के नए बने लेटेस्ट सुविधाओं वाले डिब्बों के सामान का बीमा तो टिकट
के साथ ही कराया जाएगा | वरना अगले सफ़र से पहले बुलेट ट्रेन के बु, ले, और ट अलग
अलग घरों में शोभा बढ़ा रहे होंगे | वैसे हर यात्री के साथ एक पहरेदार का भी प्रबंध
किया जा सकता है |
अपने यहाँ ट्रेन में यात्रा
का अलग ही कल्चर है | घर से अचार पूड़ी बाँध कर ले जाना और उसके बावजूद रास्ते भर
हर हॉकर से हर सामान को ले कर खाए बिना सफ़र मुकम्मल हुआ है भला? बुलेट ट्रेन इन
यात्रियों के तो किसी काम की नहीं | वो ट्रेन ही क्या जिसमे कोई हॉकर हर 5 मिनट पर
आ कर चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, समोसे, मूंगफली न बेचे | यह सरकार के स्किल इंडिया
को करारा झटका भी है | यह नागरिकों के रोजी के अधिकार का हनन है | ट्रेन में आने
वाले हॉकरों के साथ छोटे छोटे स्टेशनों पर चाय-नाश्ते के स्टाल वालों की कमाई पर
कुठाराघात है ये | वैसे, किसी विपक्षी दल ने अभी तक इस मुद्दे पर गौर नहीं किया है
वरना यह मुद्दा तो आन्दोलन लायक है |
कमाई तो ट्रेन के स्टाफ की
भी कम होनी है | बर्थ एलौट भला कैसे की जायेगी जब बर्थ की जगह सीट्स ने ले ली हो |
अब तो टी.टी. सिर्फ कंडक्टरों की तरह टिकट फाड़ने के काम ही आया करेंगे | उनके वो
दिन तो हवा हुए ही समझो जब उनके पीछे-पीछे लोगों का झुण्ड एक बर्थ के लिए चिरौरी
करता घूमता था |
अपने जैसे घनी आबादी वाले
देश में जहाँ पटरियाँ सिर्फ ट्रेन चलाने के लिए ही नहीं बल्कि शौचालय के रूप में भी
प्रयुक्त होतीं हों वहां बुलेट की रफ़्तार में उनके परखच्चे उड़ने की प्रबल संभावना
है | इसके कारण पटरियों को विशेष सुरक्षा की दरकार होगी | वरना जहाँ अभी अलग अलग
जगहों से दुर्घटना की खबरें आतीं हैं तब सिर्फ बुलेट के ट्रैक पर ही रोज
दुर्घटनाओं का तांता लग जाएगा | और रोज घटने वाली घटनाओं के प्रति हम संवेदनशील
नहीं रहते | इसलिए डर है कि कहीं हम रोज अखबार खोलते ही कहीं बुलेट का स्कोर न
देखने लगें |
कितना अच्छा होता अगर बुलेट
ट्रेन के खर्चे से पहले देश की सारी पटरियों का मेकओवर हो गया होता | कभी सोचा भी
नहीं था कि “दुर्घटना से देर भली” के अपने नीति-वाक्य को सरकार यूँ खुद ही बिसरा देगी | और
हम हमेशा की तरह सिर्फ दुआ करेंगे कि आइन्दा कहीं कोई दुर्घटना न हो |
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