एक बार भगवान जी के दरबार
में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम
ही था और ये होना स्वाभाविक ही था | नेता तो आग उगलते हुए भाषण देने वाला ही होना
चाहिए वरना उसके चेले-चपाटों में जोश कहाँ से आयेगा ? और आग उगलने के लिए गर्मी से
बेहतर चॉइस और कोई हो भी नहीं सकती थी | तो भगवान जी हमेशा की तरह शेष-शय्या पर
लेटे लक्ष्मी जी से पैर दबवा रहे थे | उन्होंने गर्मी से भरी गर्मी की तेज आवाजें
सुनीं तो अपनी आँखें खोल सबको निहारा | उत्तेजना से गर्मी का चेहरा लाल हो रहा था
| उसके पीछे सर्दी भी तख्ती थामे खड़ी थी | सबसे पीछे बेचारा बरसात का मौसम सर
झुकाए खडा था जैसे ससुराल में नई बहू से कोई नुकसान हो जाए और वो बेचारी सर झुकाए
सारे अभियोग सुने |
भगवान जी ने माहौल की
गर्माहट को कम करने के लिए चुहल की और बोले | भई, तुम तो वैसे ही इतने गर्म हो अब
और गर्मी दिखा कर क्या हमारे क्षीरसागर को सुखाने का इरादा है ? गर्मी का मौसम बेचारा
खिसिया गया | पर अपने अभियोग को चुहल से हल्का होते देख वह पुनः तमतमा उठा | बोला,
आपने हम सब को समान बनाया था | लेकिन अब बस इस बरसात की ही पूछ होती है | आपने हम
सब के साथ साथी दिए हैं | हमारे साथी किसी काम के नहीं और देखिये इस बरसात को | ये
और इसके साथियों ने सारे संसार में धूम मचा रखी है | हमें तो कोई पूछता ही नहीं | अब
हम सब के साथ पक्षपात हो और हम शिकायत भी न करें ?
भगवान जी ने पूछा, आखिर
माजरा क्या है ? आखिर बरसात से समस्या किस बात से है ? अपने साथियों से या इसके
साथियों से ? गर्मी और सर्दी एक सुर में बोल पड़े, प्रभु दोनों से | हमारे साथ आपने
पसीना, चिपचिपाहट, घमौरी, बदबू और सर्दी के साथ कंपकंपी, पाला दे डाला | ये सारे
साथी ऐसे हैं जो लोगों को प्रिय नहीं | अब ऐसे में कौन हमारे पास आना चाहेगा | कोई
कवि हम पर कविता नहीं लिखता | हम पर फ़िल्में नहीं बनतीं | ऐसा अनरोमांटिक बना दिया
प्रभु कि सब हमारे जल्दी सिधारने की कामना करते हैं |
इधर इसके पास बादल, बिजली,
छींटे, बौछार सब हैं | रोमांस के सारे अवयव | कवि इसके लिए रचना क्या पूरा
खंड-काव्य लिख चुके हैं | नायिकाएं भी इसके ही गुण गातीं है | अब आप ही बताइये
नायिकाएं कहीं पसीनों में भींगती अच्छी लगतीं हैं | फिर कोई उन पर क्यों कुछ
लिखेगा | कुछ तो न्याय करिए प्रभु | हमारे भी साथी बदलिए |
प्रभु मुस्कुराते हुए सब
शिकायतें सुनते रहे | फिर बारिश को आगे बुलाया और उसे पुचकार कर पूछा, ये मैं क्या
सुन रहा हूँ ? तुम्हारे खिलाफ इतनी शिकायतें ! बात वैसे उनकी गलत भी नहीं है | और
कल को वो अपनी पे आ जाएँ और गर्मी अपने मौसम में तेवर न दिखायें तो तुम्हारा तो
नम्बर ही नहीं आ पायेगा | अब बताओ, न गर्मी पानी को सुखायेगा, न बादल बरसेंगे |
फिर कहाँ जाओगे भला?
इतना सुनते ही बारिश तो
फूट-फूट कर रो पड़ी | बोली, प्रभु, आप भी पूरा माजरा न जान कर बस सुने हुए को सच मान
रहे | अब उसे रोता देख प्रभु चकराए कि यहाँ तो दोनों ही पक्ष दुखी हैं | बोले पूरी
बात खुल कर समझाओ | बारिश ने आंसू पोंछते हुए कहा | दरअसल, ये सब भ्रम है | मेरी
हालत ऐसे बच्चे जैसी है जिसके बारे में सब सोचते हैं कि वो शिक्षकों का प्रिय है |
जबकि वो ये नहीं जानते कि उसे प्रिय होने का क्या-क्या दंड भुगतना पड़ता है | इधर
वो सहपाठियों की ईर्ष्या तो झेलता ही है और उधर शिक्षक भी उसे कौड़ी का तीन नहीं
गिनते | सबको बारिश का रोमांस दिखता है | बिजली, बादल दिखते हैं | लेकिन इसके पीछे
के हालात नहीं दिखते |
सबको रोमांटिक मौसम दिखता |
ये कोई नहीं देखता कि आपने सिर्फ मेरे ही दो मालिक बनाये हैं | मुझे दो देवों के
आदेश मानने पड़ते हैं | कभी वरुण देव की सुनो तो इंद्र देव रूठ जाते हैं | फिर बिना
बादल के ही बरसना पड़ता है | बिन बादल बरसने जाना ऐसे लगता है जैसे बिना हेलमेट
बाइक चलाना | ज्यों बिना अस्त्र-शस्त्र युद्ध के मैदान में उतरना | इंद्र देव की
सुनो तो वरुण देव जल की सप्लाई रोक लेते हैं | तब खाली गरज के आना पड़ता है | इन
दोनों देवों के टसल में ही “जो गरजते हैं वो बरसते नहीं” कहावत तैयार हुई | और किसी के हैं दो देव ? मैं तो किसी से
शिकायत नहीं करता |
अब आगे सुनिए | बारिश करने
निकलो तो किसी को अचार सुखाने होते हैं तो
किसी को पापड़ | बरस जाओ तो उनकी गाली खाओ | न बरसो तो उनके पड़ोसियों की | इनके साथ
तो ये आधा-अधूरे वाला टंटा नहीं है | और हर बारिश के बाद पकोड़ों की रस्म के चक्कर
में हर घर में औरत दुखी है | अब तो धरती वालों ने अपनी बिजली की व्यवस्था कर ली है
जो बारिश में ठप पड़ जाती है | अब इंसान हमारी बादल की सखी बिजली के बिना रह सकता
है लेकिन अब उसे अपनी बिजली के बिना एक पल भी रहना गवारा नहीं | उसे बिजली इतनी
प्रिय हो गयी है कि वो बिना बारिश के रहने को तैयार हुए जा रहा है |
जल्द ही ऐसा भी होने वाला
है जब वो बारिश भी खुद ही करा लेगा | मेरे तो
अस्तित्व पर ही संकट छा रहा है और इधर ये मुझे सर्वप्रिय समझ रहे | प्रभु,
इन्हें चाहे प्रिय न मानें किन्तु इन्हें मिटाने
की बात तो कोई नहीं करता | इतना समझाने के बाद भी मोर्चा निकाल लाये | आप
ही समझाईये इन्हें | उधर प्रभु निर्णय सुनाना भूल इस सोच में डूबे हैं कि इंसान
कहीं दूसरे भगवान् का निर्माण न कर ले |
प्रभु निर्णय सुनाना भूल इस सोच में डूबे हैं कि इंसान कहीं दूसरे भगवान् का निर्माण न कर ले |-----bas yahi shesh bacha hai..behatreen!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंरिकार्ड किया ,भगवान सोच में पड़ गए ... 👍
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