हमारे शहर में पिछले दिनों
एक नया रेस्टोरेंट खुला | था तो वह एक थ्री स्टार रेस्तरां ही लेकिन ताजा-ताजा हुए
शहर में यह किसी पांच सितारा रेस्तरां से कम हैसियत न रखता था | उसके मालिक शहर के
इकलौते रईस भागमल थे | भागमल के बारे में यह प्रसिद्ध था कि वो जिस चीज में भी हाथ
लगाते वो सोना उगलने लगती थी | मतलब बस यही कि भागमल वो पारस पत्थर थे जो जिसे छू
ले वो सोना बन जाए | रेस्तरां खुला तो जैसी की अपेक्षा थी फैशन के मुताबिक़ चायनीज रेस्तरां
का बोर्ड लगाया गया |
वैसे तो हमारे शहर में
ठेलों पर भी चाओ-मिन, मंचूरियन और मोमोज मिल जाते थे, लेकिन रेस्तरां का दबदबा
बनाने के लिए उसकी सज्जा भी चायनीज रखी गयी | और तो और उसके वेटर भी चायनीज ही थे |
जैसे ही कोई ग्राहक अन्दर आता, ये दोहरे हो के कोर्निश की मुद्रा में झुक कर
स्वागत करते | और यही झुकना आर्डर लेने से ले कर ग्राहक के जाने तक जारी रहता |
चाहे ग्राहक खाने की तारीफ़ करे या बुराई, वेटर बस झुक कर “चिन-हुआहुआ” ही कहते | बड़ा जबरदस्त
इम्प्रैशन पड़ता ग्राहक पर | इस प्रकार रेस्तरां तो चल निकला |
अब एक दिन ऐसे ही किसी वेटर
झुक कर “चिन-हुआहुआ” कहने को हुआ ही था कि उसके द्वारा रात के खाए
हुए मूली के परांठे सशब्द उद्घोष कर बैठे | ये तो सबको पता ही था कि संकट काल में
मातृभाषा ही याद आती है | तो वेटर के मुँह से हडबडाहट में “चिन-हुआहुआ” की जगह “माफ़ कीजियेगा” निकल गया | और दुर्योग से उस वक़्त “खुलासा टाइम्स” के सनसनीखेज रिपोर्टर वहीँ मौजूद थे | बस फिर
क्या था | अगली सुबह रेस्तरां के चायनीज वेटरों के चायनीज न होने की खबर शहर भर की जुबान पर थी | भागमल के
विरोधियों को इससे अच्छा मौक़ा मिला | उन्होंने भागमल पर तरह-तरह के आरोप लगाने
शुरू कर दिए कि उन्होंने जनता को धोखे में रखा |
आरोपों की बौछार से त्रस्त हो कर भागमल ने अपनी सफाई देने के लिए “खुलास टाइम्स” के टीवी चैनल पर खुद आ
कर स्पष्टीकरण देने का फैसला किया | नियत समय पर पूरा शहर इस इवेंट को देखने के
लिए सांस रोक कर टीवी के सामने बैठ गया | इवेंट था तो प्रायोजक आने ही थे | खैर, जैसे-तैसे कार्क्रम आरम्भ हुआ
| पहला आरोप लगते ही भागमल प्रस्तोता पर हावी हो गए | उसने यह पूछ लिया कि आपने
रेस्तरां खोलते समय इसके चायनीज होने के बड़े-बड़े दावे किये थे, जिनमे वेटर से ले
कर रसोइये तक के चायनीज होने की बात कही गयी थी |
बस फिर क्या था, भागमल तो
जो धाराप्रवाह शुरू हुए कि शहर वासियों को उनमे अपना भावी नेता दिखने लगा | उन्होंने
कहा कि बताइये मैंने क्या कहा था ? यही न, कि सारा स्टाफ चायनीज होगा | तो गलत
कहाँ कहा ? चायनीज ही तो हैं ये | चायनीज का अर्थ पता है ? जहाँ जो है वहाँ वो न
हो के कुछ और होता है वो चायनीज होता है | चायनीज का अर्थ अस्थायी होता है, जो
सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल किया जा सके | चायनीज का अर्थ अल्पजीवी होता है | ये बात
एंकर समेत बहुतों को समझ में नहीं आई |
यह भांपते ही भागमल ने
समझाने की प्रक्रिया का थोड़ा सरलीकरण किया | वे बोले, चीन से हमारे सम्बन्ध युगों
से रहे हैं | इतिहास में भी इसका वर्णन है | ज्यादा पीछे न जाते हुए आजादी के काल
में पहुंचते हैं | आजाद भारत में “हिंदी-चीनी भाई-भाई” का नारा दिया गया था | अब बताइए क्या हिंदी और चीनी भाई
लगते हैं ? उस नारे को तो वहीँ लड़ाई में दफ़न कर दिया गया था | उसके अलावा हमारा
उनसे सीमा विवाद भी है | विवाद के बावजूद हममें व्यापार भी होता है और भरपूर होता
है |
हमारे बाजार चीन से बने
सामानों से अटे पड़े हैं | उन सामानों की क्वालिटी हमारे गाँवों में बने सामानों से
भी बदतर होती है | इतनी कि अब हम चायनीज माल को निकृष्ट माल समझते हैं | कोई भी
चीज जो न चल रही हो या जिसकी गुणवत्ता के बारे में संदेह हो, वो चायनीज कहलाती है
| तो गर मैंने अपने रेस्तरां में चायनीज का ठप्पा लगाया तो गलत कहाँ है ? मैंने ये
कब कहा था कि मेरे यहाँ चीन से आये हुए असली चायनीज वेटर ही काम करेंगे ? चायनीज
से ही आपको समझ जाना चाहिए था कि गारंटी की कोई बात न होगी |
इस पर एंकर बोला कि असली
चायनीज खाने की बात जो कही थी आपने, उसका
क्या ? वे तपाक से बोले, असली चायनीज यहाँ खाता कौन है ? जब तक असली चायनीज में
हींग-जीरे का तड़का न लगे, तब तक हिन्दुस्तानी हलक से नीचे कौर न उतरे | मोमोज की
भी हमने फ्राइड वैरायटी ईजाद कर ली है, क्योंकि उबला, भाप में पका यहाँ कितने खा
सकेंगे ? फिर उन्होंने देशभक्ति कार्ड खेलते हुए भावविभोर हो कर कहा, चायनीज
प्रोडक्ट के हमारे बाजारों में कब्जे से हमारे लोगों के रोजगार में जो कमी आई है
मैंने तो उनमें से कुछ लोगों को रोजगार दे के बस वही कमी पूरी की है | वे चायनीज
तरह के कपडे पहन कर और मेकअप कर के कमाई कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है | उन्होंने
हमारे रोजगार हथियाए | बदले में हमने उनका स्वाद हथिया लिया | कल को असली चायनीज
बोल के मंचूरियन में जब लौकी के कोफ्ते तैरेंगे तब गर्व से सीना हम
हिन्दुस्तानियों का ही तो चौड़ा होगा | हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे की आड़ में हमने
जो शिकस्त खाई मैं तो सिर्फ उसी का बदला ले रहा हूँ |
आगे समाचार ये है कि टीवी
पर इस सीधे प्रसारण को देख कर भागमल को एम.एल.ए. का टिकट ऑफर करने वालों का तांता
लगा हुआ है | आजकल हर पार्टी को ऐसा ही उम्मीदवार चाहिए जो शब्दों को तोड़ मरोड़ कर
उसे जनता में अपने पक्ष में प्रस्तुत कर सके और विपक्षियों की धज्जियां उड़ा सके |
ऐसे माहौल में भागमल जैसों का भविष्य उज्जवल है | ईश्वर करे उनका कैरियर चायनीज न
निकले बल्कि चायनीज इंडियन सा निखरे |
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