तुम लिख रहीं थीं,
मेरा नाम, रेत पर,
सागर किनारे
और मैं महसूस कर रहा था,
गीली रेत में तुम्हारी उँगली की छुअन
तुम्हारी पोरों की गर्मी से दहक रहा था,
मेरा नाम,
तुम्हारे स्पर्श सेऔर मैं,
मैं उस गर्मी को निगाहों में समेट
तुम्हारे गालों पर उड़ेल रहा था
तभी, एक लहर ने धो दी वो लिखाई,
गुम हो गया वो नाम जो था
अभी कुछ ही देर पहले तक
प्यार के प्रतीक सा,
जैसे कभी कहीं कुछ था ही नही
मैंने अपनी नजरें रेत से उठा
झांका तुम्हारी आँखों में
वहां कहीं भी नही थी मायूसी
लिखे के अनलिखे हो जाने की,
मेरी सवालिया नजरों को पढ़ लिया तुमने
और कहा, मिट जाने दो , मैं फिर लिखूंगी
कि मुझे प्यार है इस से, इस नाम से
और एक बार फिर वो हरारत महसूस हुई मुझे
फिर वही गीली रेत में तुम्हारी ऊँगली की छुअन
और मुझे प्यार हो गया
फिर से, तुमसे । <3
बुधवार, 16 नवंबर 2016
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
काश
जाने कैसे लोग होते हैं जिन्हें कोई regret कोई पछतावा नहीं होता। इतना सही कोई कैसे हो सकता है कि कुछ गलत न हुआ हो कभी भी उसकी जिंदगी में। अब...
-
एक बार माता-पिता बन जाने के बाद आप कोई भी चीज अपने लिए नहीं लेते | सब कुछ बच्चों के लिए ही लिया जाता है | ऐसे ही एक दिन हमारे यहाँ क...
-
एक बार भगवान जी के दरबार में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम ही था और ये होना स्वाभावि...
-
चांद मुझे तुम सा लगता है, तुम सा ही लुभावना, अपनी ही कलाओं में खोया, तुम्हारी मनःस्थिति सा कभी रस बरसाता तो कभी तरसाता कभी चांदनी से सराब...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें