कैसा लगता है
जब थक के चूर हो,
बदन टूट रहा हो,
और काम न लिए जाने की,
रहम की भीख मांग रहा हो,
और जिम्मेदारियां,
रिंग-मास्टर सी चाबुक फटकारें
और बदन, किसी मदारी के बन्दर की तरह
हर चाबुक पर कलाबाजी दिखाते
काम पर लग जाता है तब, हाँ तब
सोचती हूँ कि थका क्या था ?
शरीर या मन ?
ये मन ही है जो इस टूटे शरीर को भी समेट कर
दौड़ के लिए तैयार कर देता है,
हर पल एक नए मुकाबले के लिए , और
मैं वारी जाती हूँ मन की इस ताकत पर,
तभी अनायास एक सवाल कचोटता है,
क्या हो गर मन ही थक जाए ?
शरीर उसे वापस बहला फुसला कर,
पुचकार कर ला पायेगा ? नहीं,
थका मन मुकाबले से पहले ही
तन को मुकाबले से बाहर करवा देगा,
और मैं डर से काँप उठती हूँ ,
इस मन के मरने या मारने के ख्याल भर से ही,
और थकन के चुनाव में शरीर को ही चुनती हूँ ।
रविवार, 20 नवंबर 2016
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बोंसाई सी लड़की
कभी देखें हैं बोन्साई खूबसूरत, बहुत ही खूबसूरत लड़कियों से नही लगते? छोटे गमलों में सजे जहां जड़ें हाथ-पैर फैला भी न सकें पड़ी रहें कुंडलियों...
-
एक बार भगवान जी के दरबार में सारे मौसम बारिश के खिलाफ नालिश ले के पहुंचे | उन सब का नेता गर्मीं का मौसम ही था और ये होना स्वाभावि...
-
हमारे शहर में पिछले दिनों एक नया रेस्टोरेंट खुला | था तो वह एक थ्री स्टार रेस्तरां ही लेकिन ताजा-ताजा हुए शहर में यह किसी पांच सितार...
-
मैं खरा बोलता हूँ, यही थी राय सबों की मेरे बारे में कड़वा न कह बस खरा कह अपने कहे को मृदु बनाते थे लोग, खरा न सह पाने के कारण दूरी बनाते...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें